संभोग: समय शून्यता की झलक—4
जितना आदमी प्रेम पूर्ण होता है। उतनी तृप्ति, एक कंटेंटमेंट, एक गहरा संतोष, एक गहरा आनंद का भाव, एक उपलब्धि का भाव, उसके प्राणों के रग-रग में बहने लगाता है। उसके सारे शरीर से एक रस झलकने लगता है। जो तृप्ति का रस है, वैसा तृप्त आदमी सेक्स की दिशाओं में नहीं जाता। जाने के लिए रोकने के लिए चेष्टा नहीं करनी पड़ती। वह जाता ही नहीं,क्योंकि वह तृप्ति, जो क्षण भर को सेक्स से मिलती थी, प्रेम से यह तृप्ति चौबीस घंटे को मिल जाती है।