दिनांक
21 मई 1979; श्री
रजनीश आश्रम,
पूना।
प्रश्न
सार:
1—आपके
हिंदी
प्रवचनों में
भी सत्तर—अस्सी
प्रतिशत वे
पाश्चात्य
संन्यासी
होते हैं
जिन्हें
हिंदी—भाषा
बिल्कुल नहीं
आती। आप फिर
भी उसी तत्परता, सहजता और
गहनता से
बोलते हैं
मानो पूरी
मंडली भाषा
समझ रही हो।
क्या आपको इस
बात से कोई
अड़चन नहीं आती?
2— इस
सदी का मनुष्य
अधार्मिक
क्यों हो गया
है?
3—बहुत
दिनों से बड़ी
बेचैन और
गुमसुम हो रही
हूँ। पहले की
तरह खुलकर हँस
भी नहीं सकती
हूँ। दो दिन
के दर्शन से
अपूर्व
आनंदित हुई।
लेकिन चार रात
से सो नहीं
पाती और ऐसी
हालत बहुत
दिनों से है।
तुझे
क्या सुनाऊँ
मैं दिलरुबा. ....
4—परमात्मा
से वियोग
क्यों?